09-01-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

इंतज़ार की बजाय इंतज़ाम करो

अपने सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणकारी संकल्प से सतयुगी, पावन सृष्टि का सृजन करने वाले सृजनहार शिव बाबा बोलेः-

निराकारी, आकारी और साकारी - इन तीनों स्टेजिस को समान बनाया है? जितना साकारी रूप में स्थित होना सहज अनुभव करते हो, उतना ही आकारी स्वरूप अर्थात् अपनी सम्पूर्ण स्टेज व अपने अनादि स्वरूप - निराकारी स्टेज - में स्थित होना सहज अनुभव होता है? साकारी स्वरूप आदि स्वरूप है, निराकारी अनादि स्वरूप है। तो आदि स्वरूप सहज लगता है या अनादि रूप में स्थित होना सहज लगता है? वह अविनाशी स्वरूप है और साकारी स्वरूप परिवर्तन होने वाला स्वरूप है। तो सहज कौन-सा होना चाहिए? साकारी स्वरूप की स्मृति स्वत: रहती है या निराकारी स्वरूप की स्मृति स्वत: रहती है, या स्मृति लानी पड़ती है? मैं जो हूँ, जैसा हूँ उसको स्मृति में लाने की क्या आवश्यकता है? अब तक भी स्मृति-स्वरूप नहीं बने हो? क्या यह अन्तिम स्टेज है या बहुत समय के अभ्यासी ही अन्त में इस स्टेज को प्राप्त कर पास विद ऑनर  बन सकेंगे? वर्तमान समय पुरूषार्थियों के मन में यह संकल्प उठना कि अन्त में विजयी बनेंगे व अन्त में निर्विघ्न और विघ्न-विनाशक बनेंगे - यह संकल्प ही रॉयल रूप का अलबेलापन है अर्थात् रॉयल माया है; यह सम्पूर्ण बनने में विघ्न डालता है। यही अलबेलापन सफलतामूर्त और समान-मूर्त बनने नहीं देता है। 

दूसरा संकल्प - विनाश की घड़ियों की गिनती करते रहते हो ना। सोचते रहते हो कि क्या होगा, कैसे होगा या होगा कि नहीं होगा? यह सीधा स्वरूप नहीं है, यह है -- सीधा संशय का रूप। इसलिए सीधा शब्द न बोल रॉयल शब्द बोलते हैं कि क्या होगा, कैसे होगा? - इस स्वरूप से सोचते हो। जितना समय समीप आ रहा है, उतना स्वयं को सतयुग के देवी-देवताओं की विशेषताओं के समीप बना रहे हो? विनाश किसके लिये होगा; किनके लिये होगा - यह जानते हो? तीव्र पुरूषार्थियों व सम्पूर्ण बनने वाली आत्माओं के लिये सम्पूर्ण सृष्टि व सतोप्रधान प्रकृति की प्रालब्ध भोगने के लिए विनाश होना है। तो विनाश की घड़ियाँ गिनती करते रहना चाहिए या स्वयं को सम्पूर्ण सतोप्रधान बनाने के लिये बाप-समान क्वॉलिफिकेशन को बार-बार गिनती करना चाहिए? 

विनाश की घड़ियों का इंतज़ार करने की बजाय तो स्वयं को अभी से सम्पन्न बनाने और बाप-समान बनाने के इंतज़ाममें रहना चाहिए। परन्तु इंतज़ार में ज्यादा रहते हो। प्रारब्ध भोगने वाले ही इस इंतज़ार में रहते हैं तो अन्य आत्मायें, जो साधारण प्रारब्ध पाने वाली हैं, उन तक भी सूक्ष्म संकल्प पहुँचाते हो? रिजल्ट में मैजॉरिटी आत्मायें यही शब्द बोलती हैं कि जब विनाश होगा तब देख लेंगे। जब प्रैक्टिकल प्रभाव देखेंगे, तब हम भी पुरूषार्थ कर लेंगे। क्या होगा, कैसे होगा - यह किसको पता? यह वायब्रेशन्स निमित्त बनी हुई आत्माओं का औरों के प्रति भी कमज़ोर बनाने का व भाग्यहीन बनाने का कारण बन जाता है। 

इस समय आप सबकी जगत्-माता और जगत्-पिता की व मास्टर रचयिता की स्टेज है। तो रचयिता के हर संकल्प अथवा वृत्ति के वायब्रेशन्स रचना में स्वत: ही आ जाते हैं। इसलिये वर्तमान समय जो कर्म हम करेंगे हमको देख सब करेंगे - सिर्फ यह अटेन्शन नहीं रखना है, लेकिन साथ-साथ ‘‘जो मैं संकल्प करूंगी, जैसी मेरी वृत्ति होगी वैसे वायुमण्डल में व अन्य आत्माओं में वायब्रेशन्स फैलेंगे’’ - यह स्लोगन भी स्मृति में रखना आवश्यक है वर्ना आप रचयिता की रचना कमज़ोर अर्थात् कम पद पाने वाली बन जायेगी। रचयिता की कमी रचना में भी स्पष्ट दिखाई देगी। इसलिये अपने कमज़ोर संकल्पों को भी अब समर्थ बनाओ। यह जो कहावत है कि ‘संकल्प से सृष्टि रची’, यह इस समय की बात है। जैसा संकल्प वैसी अपनी रचना रचने के निमित्त बनेंगे। इसलिये हर-एक स्टार में अलग-अलग दुनिया का गायन करते हैं। 

स्वयं का आधार अनेक आत्माओं के प्रति स्मृति में रखते हुए चलते हो या यह बापदादा का काम है? आपका काम है या बाप का काम है? प्रारब्ध पाने वालों को पुरूषार्थ करना है या बाप को? जैसे लेने में कुछ भी कमी नहीं करना चाहते हो या लेने के समय स्वयं को किसी से भी कम नहीं समझते हो बल्कि यही सोचते हो कि मेरा भी अधिकार है, वैसे ही हर बात को करने में अपने को अधिकारी समझते हो? या करने के समय तो यह समझते हो कि हम छोटे हैं, यह बड़ों का काम है और लेने के समय यह सोचते हो कि हम छोटे भी कम नहीं हैं, छोटों को भी सब अधिकार होने चाहिए; छोटों को भी बड़ा समझना चाहिए व बनना चाहिए? जो करेंगे वह पायेंगे या जो सोचेंगे वह पायेंगे? नियम क्या है? सोचना, बोलना और करना - ये तीनों एक-समान बनाओ! सोचना और बोलना बहुत ऊंचा, करना कुछ भी नहीं - तो वे सोचते और बोलते ही समय बिता देंगे और करने से जो पाना है, वह वे पा नहीं सकेंगे। स्वयं को तो श्रेष्ठ प्राप्ति से वंचित करेंगे ही, अपनी रचना को भी वंचित करेंगे। इसलिये कहना कम और करना ज्यादा है। मेहनत करके पायेंगे - यह लक्ष्य सदा याद रखो। मुझे भी महारथी व सर्विसएबल समझा जाए, मुझे भी अधिकार दिया जाए, स्नेह व सहयोग दिया जाए - यह मांगने की चीज नहीं। श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ वृत्ति और श्रेष्ठ संकल्प की सिद्धि रूप में यह सब बातें स्वत: ही प्राप्त होती हैं। इसलिये इन साधारण संकल्पों में या व्यर्थ संकल्पों में भी समय व्यर्थ न गंवाओ। समझा? 

ऐसे बाप-समान गुण और कर्म करने वाले, हर संकल्प में जिम्मेवारी समझने वाले, संकल्प में भी अलबेलेपन को मिटाने वाले, सदा बाप-समान बाप के साथी बन साथ निभाने वाले, हर पार्ट को साक्षी हो बजाने वाले, सर्व-श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। 

अव्यक्त वाणी का सार

1. जितना साकारी रूप में स्थित होना सहज अनुभव होता है, उतना ही आकारी स्वरूप अर्थात् अपनी सम्पूर्ण स्टेज में और उतना ही अपनी निराकारी, अनादि स्टेज में स्थित होना सहज अनुभव होना चाहिए। 

2. यह याद रखना है कि जैसा संकल्प मैं करूँगी और जैसी मेरी वृत्ति होगी, वायुमण्डल में वैसे ही वाइब्रेशन्स फैलेगे। 

3. विनाश की घड़ियाँ गिनती करने की बजाय स्वयं को सम्पूर्ण बनाने की और बाप-समान क्वॉलिफीकेशन्स की बार-बार गिनती करो। 

4. कहना कम है, करना ज्यादा है। 

5. सोचना, बोलना और करना - तीनों एक-समान बनाओ।